आर्य और काली छड़ी का रहस्य-33
अध्याय-11
रुका हुआ समय
भाग-2
★★★
आर्य रोशनी वाले कमरे के सामने खड़ा था। उसके हाथ उसकी आंखों पर थे। वह कुछ देर तक वहीं सामने खड़ा रहा और रोशनी की तीव्रता का अभ्यास अपनी आंखों को करवाया। इसके बाद उसने अपनी आंखों को सामने देखने के लिए केंद्रित किया। अब कुछ हद तक उसकी आंखें रोशनी को झेल पा रही थी।
रोशनी को थोड़े से समय तक झेलने के बाद आर्य आगे बढ़ा और उस कमरे में चला गया। कमरे में जाने पर उसे पता चला कि यहां हर तरफ से रोशनी आ रही थी। दीवारों से भी। फर्श से भी। और ऊपर की छत से भी। यहां उसे रोशनी के अलावा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
ऐसा लग रहा था जैसे वह रोशनी के किसी बहुत बड़े तालाब में आ चुका है। ऐसे तलाब में जहां पानी की जगह सिर्फ और सिर्फ रोशनी है। आर्य वहां कमरे में इधर-उधर चलने लगा। मन ही मन वह इस बारे में सोच रहा था कि रोशनी की तलवार को यहीं कहीं होना चाहिए।
कुछ देर तक इधर-उधर चलने के बावजूद उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। ना तो उसे किसी तरह की दिशा के बारे में पता चला ना ही रोशनी की तलवार के बारे में।
तभी उसे अपने हाथ में पकड़ी आचार्य वर्धन की छड़ की तरफ देखा। उसने देखा आचार्य वर्धन की छड़ सफेद होने के बावजूद किसी काले रंग के हल्के के धुए को छोड़ रही थी। यह काले रंग का हल्का धुआं ऊपर जाने की बजाय कमरे में ही एक दिशा की ओर जा रहा था। ।
आर्य नहीं जानता था यह क्या है क्या नहीं, मगर उसके लिए यह चीज एक उम्मीद की तरह थी। कम से कम उसे यह तो पता चल रहा था कि उसे जाना किस तरफ है। वह उस धुएं के पीछे पीछे चल पड़ा।
थोड़ा सा आगे चलने पर उसे एहसास हुआ कि कमरे में कुछ ऐसा हो रहा है जिसकी वजह से यहां का फर्श कांप रहा है। यह कुछ अजीब सा था। मानो कोई बड़ी सी चीज उसकी ओर आ रही है। आर्य ने खुद को अपनी ही जगह पर शांत किया। वह घुटनों के बल बैठा और फर्श पर पैर रख यह महसूस करने की कोशिश की कि कंपन का स्त्रोत किस ओर है।
लेकिन तभी एक आवाज और कमरे में गूंजने लगी। यह आवाज किसी के मोटे मोटे कदमों की चलने की आवाज थी और उसके पीछे से आ रही थी।
आवाज को महसूस करते ही आर्य पीछे पलटा और वहां किसी ने उसके शरीर पर जोरदार भारी भरकम चीज मारी। रोशनी की वजह से उसे यह भी नहीं पता चला कि यह किस का हमला था, हमला होते ही वह दूर जा गिरा।
आर्य गिरते ही सभंला और संभल कर खड़ा हो गया। उधर सामने से भी आवाज वापिस उसकी ओर आने लगी। आर्य ने अपनी आंखों को छोटी कर सामने की ओर केंद्रित कर लिया। इसके साथ-साथ उसने खुद को भी थोड़ा सा नीचे झुका लिया। नीचे झुकना बचाव के लिए बेहतर था, जबकि आंखों को केंद्रित करने पर उसे उम्मीद थी कि वह सामने कुछ देख पाए।
तभी सामने वाली आवाज उसके और पास आई और उसे पता चला हमला किसने किया था। हमला करने वाला कोई अजीब सा चिंपाजी जैसा दिखने वाला जानवर था जो यहां खुद भी रोशनी के कमरे में रोशनी से चमक रहा था। या फिर यह कह दिया जाए कि उसके बाल ही सफेद थे।
आर्य ने जैसे ही उसे स्पष्ट तौर पर देखा वह सावधान हो गया। वह चिंपांजी जैसा दिखने वाला जानवर पास आया और उसने अपने हाथ का हमला किया। आर्य तुरंत नीचे झुककर गलोटी खाकर दूसरी तरफ चला गया। ऐसा करने से उसका चिंपाजी जी के हमले से बचाव हो गया।
मगर वह अभी भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं था। दूसरी तरफ चले जाने के बाद चिपांजी वहां भी उसके पीछे-पीछे आने लगा। आर्य के पास उस पर हमला करने के लिए भी कुछ नहीं था। शिवाय उस छड़ के जो उसे इस्तेमाल करना नहीं आती थी।
जल्द ही चिंपाजी जी दोबारा उसके सामने आ गया। इस बार भी बचाव के लिए आर्य ने खुद को पहले की तरह कर लिया। आंखें केंद्रित और शरीर नीचे की तरफ। चिंपाजी ने फिर से अपने हाथ का जबरदस्त हमला आर्य पर किया, मगर आर्य सावधान था तो वह वापस गलौटी खाकर बच गया।
इस बार वह गलौटी खाते हुए अपने बांई और की दिशा में चला गया। वहां अपने बांई और की दिशा में उसे महसूस हुआ कि यहां कोई ऐसी चीज है जो जमीन में गड़ी हुई है। आर्य ने अपने हाथों से उसे स्पर्श किया तो उसके हाथ पर खरोच आ गई। खरोच आने के साथ-साथ वहां से खून भी निकलने लगा। आर्य समझ गया कि यहां जरूर वही तलवार है जिसके बारे में आचार्य ज्ञरक ने उससे बात की थी।
उसने तुरंत सावधानी से तलवार को छूते हुए उसके ऊपरी सिरे की तलाश की। जैसे ही उसे तलवार का ऊपरी सिरा मिला, उसने उसे कस कर पकड़ा और जोर से खींच दिया। एक ही झटके में तलवार उसके हाथ में आ गई। जैसे ही तलवार उसके हाथ में आई कमरे की सारी रोशनी तलवार में समाने लगी। आर्य ने जब इस चीज को देखा तो उसने तलवार को ऊपर कर दिया।
उसके तलवार ऊपर करते ही जिन दृश्यों का निर्माण हुआ वह दिलचस्प और हैरतअंगेज थे। साथ में विस्मयकारी भी। उसकी तलवार ऊपर थी और कमरे की सारी रोशनी उसकी तलवार में समा रही थी।
देखते ही देखते कमरे की सारी रोशनी उसकी तलवार में समा गई, कमरा सामान्य हो गया जबकि तलवार रोशनी से चमकने लगी। आर्य ने रोशनी की चमकती हुई तलवार को देखा और कहा “अब पता चला इसे रोशनी की तलवार क्यों कहते हैं।”
उसने कमरे की तरफ देखा। अब कमरा सामान्य कमरे जैसा था तो यहां का फर्श संगमरमर का बना हुआ दिखाई दे रहा था। जब की दीवारें इंटों और पत्थरों की। वही फर्श भी इंटों का बना हुआ फर्श था। कमरे की दशा बदलने के साथ-साथ उसके साथ लड़ने वाले जानवर की दशा भी बदल गई थी। वहीं जहां वह सफेद रोशनी में सफेद रंग से चमक रहा था या यूं कह लिया जाए कि उसके बाल सफेद थे, वहीं अब सामान्य कमरे में वह काले रंग का था या यूं कह लिया जाए की अब उसके बाल सफेद की बजाय काले थे।
एक बार फिर दोनों ही एक-दूसरे के आमने-सामने थे। पहले जहां आर्य के पास लड़ने के लिए कोई हथियार नहीं था, वहीं अब उसके पास लड़ने के लिए रोशनी वाली तलवार थी। फिर अब उसे यह भी पता चल रहा था कि उस जानवर की स्थिति कहां है, जबकि पहले उसे इस तरह की कोई भी चीज पता नहीं चल रही थी।
काले रंग के चिंपाजी ने वापस अपनी छाती पर हाथ मारे और आर्य की तरफ बढ़ने लगा। आर्य तलवार को तिरछा कर उस पर हमला करने के लिए तैयार हो गया। जैसे ही चिंपाजी पास आया आर्य ने तलवार का जख्म उसके पैर पर दे दिया।
तलवार का जख्म देने के बाद वह दूसरी तरफ हटते हुए दरवाजे वाले भाग की ओर चला। वहां उसने देखा कि दरवाजा इतना बड़ा नहीं था जिससे वह चिंपांजी बाहर आ सके। दरवाजे की लंबाई चौड़ाई के मुकाबले में चिपांजी की लंबाई चौड़ाई काफी ज्यादा थी।
आर्य ने दरवाजे को देखने के बाद तुरंत मौका संभाला और वहां से बाहर निकल गया। बाहर निकलने के बाद उसने दरवाजे को बंद कर दिया। दरवाजे को बंद करते ही उसे अंदर के जानवर से छुटकारा मिल गया।
आर्य ने तुरंत अपनी स्थिति संभाली और रोशनी वाली तलवार के साथ वापिस किले की तरफ जाने लगा। किले की तरफ जाने से पहले उसने गुफा के सुरक्षात्मक पड़ाव को पार किया। सब कुछ अब ठीक उल्टे कर्म में हुआ। पहले किसी चीज ने उसका रास्ता रोका फिर किसी चीज ने। मगर आखिरकार आर्य गुफा से बाहर आ ही गया था।
गुफा से बाहर आते ही वह किले की तरफ बढ़ने लगा। चीजें अब भी पहले की तरह सामान्य थी, और उनमें किसी भी तरह का बदलाव नहीं हुआ था। लेकिन कुछ तो था जो यहां बदल रहा था। चीजें थोड़ा थोड़ा तेज होना शुरू हो रही थी। यह प्रत्यक्ष तौर पर तो दिखाई नहीं दे रहा था मगर अप्रत्यक्ष तौर पर जरूर दिखाई दे रहा था।
आर्य समझ गया कि उसे दिया गया 1 घंटे का वक्त पूरा होने वाला है। 1 घंटे का वक्त पूरा होते ही रुके हुए समय का असर खत्म हो जाएगा और चीजें फिर से पहले की तरह होने लगेगी। आर्य ने तुरंत चलते चलते अपनी तेज स्पीड का इस्तेमाल किया और किले के अंदर चला गया।
किले के अंदर जाने के बाद उसने बारी-बारी सभी पड़ावो को फिर से पार किया। लेकिन इन सब को पार करने में इस बार उसे किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आई थी। आखिर में आर्य वहां पहुंच गया जहां उसकी अचार्य वर्धन से लड़ाई हो रही थी।
वहां आचार्य वर्धन का चेहरा अभी भी दीवार की ओर था। हिना और आयुध नीचे गिरे पड़े थे। आचार्य ज्ञरक को दो अंधेरी परछाइयों ने जकड़ रखा था।
अभी भी रुके हुए समय का असर खत्म नहीं हुआ था। आर्य तुरंत सबसे पहले तलवार को लेकर अंधेरी परछाइयों के पास गया। उन अंधेरी परछाइयों के पास जिसने आचार्य ज्ञरक को जकड़ रखा था। वहां उसने तलवार का स्पर्श अंधेरी परछाई के साथ किया। उसके ऐसा करते ही अंधेरी परछाई धीरे-धीरे गायब होने लगी। उसके गायब होते ही उन अंधेरी परछाइयों की पकड़ आचार्य ज्ञरक से हट गई और वह पूरी तरह से आजाद हो गए।
उन्हें आजाद करवाने के बाद आर्य आचार्य वर्धन की तरफ बढ़ा मगर तभी रुके हुए समय का असर खत्म हो गया और सब कुछ पहले जैसा होने लगा। तुरंत ही एक तेज प्रतिक्रिया में रुकी हुई चीजों में दोबारा हलचल हुई।
आचार्य वर्धन के शरीर से निकलने वाला धुआं जो कुछ देर पहले धीरे-धीरे दीवार की तरफ जा रहा था वह पहले की ही गति में दीवार की तरफ जाने लगा।
आचार्य ज्ञरक ने जब होश संभाला तो उन्होंने खुद को आजाद पाया, जिसे देखकर वह अचंभित नहीं हुए। हिना और आयुध कुछ देर के लिए अपनी सुध खो चुके थे मगर अब उन्हें भी होश आ गया था। उन्होंने होश में आते ही देखा कि आर्य सामने रोशनी से चमकती हुई तलवार लेकर खड़ा था।
वह दोनों अपनी जगह से खड़े हुए और आर्य की और आ गए। आचार्य ज्ञरक भी खुद को संभालते हुए खड़े हुए और आर्य के पास आ गए।
हिना ने आते ही आर्य से सवाल किया “आर्य, तुम्हारे पास यह अजीब सी तलवार कहां से आई? जहां तक मुझे याद है कुछ देर पहले तुम्हारे पास इस तरह की कोई भी तलवार नहीं थीं।”
आर्य के हाथ में इस वक्त दो दो चीजें थी। एक रोशनी वाली तलवार और एक अचार्य वर्धन की चमकती छड़ी जो कि अब टूट चुकी थी। आर्य ने वह छड़ी हिना को पकडा़ते हुए कहा “इस तलवार की कहानी बहुत लंबी है। एक बार के लिए जब सब सही हो जाएगा तब मैं तुम्हें इस बारे में बताऊंगा।”
आचार्य ज्ञरक ने भी आर्य का साथ देते हुए कहा “हां हिना, अभी का वक्त यह जानने का नहीं है कि तलवार कहां से आई। अभी का वक्त इस बारे में है कि हमें आचार्य वर्धन का सामना करना है। उन्हें उनके मकसद में कामयाब होने से रोकना है। इस बात का एहसास दिलाना है कि आखिरकार वह जो भी सोच रहे हैं वह गलत है।”
आयुध बोला “क्या आचार्य वर्धन मानेंगे? हमारी अब तक की कोशिश का तो उन पर कोई फायदा नहीं हुआ...!!”
आचार्य ज्ञरक ने एक लंबी सांस खींची और आचार्य वर्धन की तरफ देखते हुए बोले। “उन्हें मानना पड़ेगा, अगर वह नहीं मानते तो मजबूरन हमें उन्हें खत्म करना पड़ेगा। रोशनी की तलवार होने की वजह से अब हममें इतनी क्षमता है कि हम उन्हें खत्म कर सकें। बस अब यही दो रास्ते हैं हमारे पास।”
उनके ऐसे कहते ही सभी के चेहरे पर सन्नाटा सा पसर गया। आचार्य वर्धन को मरना होगा यह कोई छोटी बात नहीं थी। मगर यह बात भी सच है कि अगर वह नहीं मानते तो इन लोगों के पास इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं।